हरियाणा

कारगिल युद्ध में ढिगावा मंडी क्षेत्र के जवान ने खूब दिखाई थी भादुरी, गोला बारूद की सुरंग में विस्फोट में शहीद हो गए थे क्षेत्र के लाल

सत्यखबर ढिगावा मंडी (मदन श्योराण) – गांव बड़दू धीरजा में सन् 4-5-1977 को श्रीचंद के घर धनपति देवी की कोख से जन्मे सुरेंद्र श्योराण बचपन से ही खेलकूद में और पढ़ाई में अग्रणीये थे, लेकिन बड़े भाई के साथ 15 साल की उम्र में ही भिवानी जिले के ही आसलवास दूधिया गांव की सिलोचना देवी के साथ शादी कर दी गई थी लेकिन उन्होंने अपनी प्रैक्टिक्स जारी रखी,और 5-4-1995 को 19 वर्ष की उम्र होने से पहले ही 17 जाट रेजीमेंट में भर्ती हो गए थे, सुरेंद्र श्योराण के पिता श्रीचंद भी फौजी थे, सुरेंद्र श्योराण की फौज में भर्ती होने की सूचना पर मां धनपति द्वारा पूरे परिवार में लड्डू बांटे गए थे, 17 जाट रेजीमेंट में भर्ती हुए सुरेंद्र श्योराण को कारगिल युद्ध के लिए कारगिल में टाइगर हिल चोटी नम्बर 4875 पर तैनात किया गया था।

सुरेंद्र व सुरेंद्र के साथी पाकिस्तानी सेना के सामने बहादुरी से लड़ रहे थे, 17 जाट रेजीमेंट इनकी टुकड़ी पाकिस्तान की और आगे बढ़ रही थी तभी चौकी नंबर 4875 पर गोला बारूद की एक सुरंग के विस्फोट में 7-7-1999 को शहीद हो गए, 11 जुलाई 1999 को शहीद सुरेंद्र श्योराण का पार्थिव शरीर गांव में लाया गया, उसी समय शहीद होने की सोचना उनकी पत्नी सिलोचना देवी को दी गई, तो वह अपने दो बच्चों और सास से लिपट कर रोने लगी, उनके साथ साथ क्षेत्र आये हजारों लोगों की आंखें नम थी, कुछ देर बाद साथ आए फौजियों ने बहादुरी के किस्से सुनाए और भारत माता की जय, सुरेंद्र श्योराण अमर रहे ,भारत माता की जय ,भारतीय सेना जिंदाबाद के नारों से उनका आंगन गूंज उठा तो आशु पूछते हुए उन्होंने भी शहीद सुरेंद्र श्योराण अमर रहे और भारतीय सेना जिंदाबाद के नारे लगाकर अपने शहीद पति को सलामी दी।

अमर शहीद की पत्नी सिलोचना देवी अपने पति की बहादुर की बाते सुनाते हुए बाहुक होते हुए दैनिक जागरण पत्रकार के साथ विशेष बातचीत में बताया कि उस समय मेरा लड़का मोहित और लड़की राधा दोनों बच्चे नाबालिक थे और छोटे थे आज भी मैं उनके बहादुर के किस्से अपने बच्चों को बताती हूं। लड़का फिलहाल बीएससी की पढ़ाई कर रहा है तो लड़की गवर्नमेंट जॉब में लगी हुई है।

शहीद के नाम पर सरकार द्वारा दिया गया पेट्रोल पंप को वह और उनका देवर संजय संभाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर वर्ष 7 जुलाई को उनके पैतृक गांव बड़दू धीरजा में शहीद स्मारक पर शहीदी दिवस मनाया जाता है।

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